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जयपुर: गुलाबी नगर के आराध्य गोविंद देव जी को नई पोशाक धारण करवाने के लिए लोगों को जहां सालभर इंतजार करना पड़ता था. वहीं, कोविड—19 (Coronavirus) के चलते किए गए गोविंददेवजी की नई पोशाकें अटका दी है. नई पोशाकें नहीं आने से गोविंददेवजी पुरानी पोशाकें धारण कर रहे हैं. हालांकि गोविंददेवजी के नई पोशाकों की बुकिंगें अगले साल यानी फरवरी 2021 तक की बुक है, लेकिन मंदिर होने के चलते पोशाकें नहीं पहुंच पा रही है. वहीं, ठाकुरजी को फूलमाला भी अब सेवागीर—पुजारी ही अपने हाथों से बनाकर पहना रहे हैं.
शहर के आराध्य गोविन्ददेवजी हर दिन अपने भक्तों के बनाए वस्त्र ही पहनते हैं. यह परंपरा अनवरत 73 सालों से जारी है. छोटी काशी के वाशिन्दों के आराध्यदेव गोविन्ददेवजी महाराज अब तक 30 हजार से अधिक पोशाकें धारण कर चुके हैं. इसमें सोने-चांदी के वस्त्रों से लेकर गोटे-पत्ती की सामान्य पोशाकें तक शामिल हैं, लेकिन कोरोना के चलते मंदिर बंद होने से जयपुर गोविंददेवजी मंदिर में ठाकुरजी को पुरानी पोशाक ही धारण करवाई जा रही हैं. जबकि आराध्य गोविंददेवजी को नई पोशाक धारण करवाने वाले भक्तों की लंबी वेटिंग हैं. अभी भी हाल ये है की नई पोशाकों की बुकिंगें अगले साल यानी फरवरी 2021 तक की बुक है.
हालांकि गोविंददेवजी मंदिर में कई परंपराएं लॉकडाउन और मंदिर बंद होने के बाद भी निभाई गई. मंदिर में आखातीज को ठाकुरजी को नई पोशाक धारण करवाई गई. हर साल आखातीज को ठाकुरजी को नई पोशाक धारण करवाई जाती है. वहीं, जलयात्रा उत्सव के दौरान ज्येष्ठाभिषेक में भी ठाकुरजी को नई पोशाक धारण करवाई गई. मंदिर प्रवक्ता मानस गोस्वामी ने बताया कि ठाकुरजी को पहले रोजाना नई पोशाक धारण करवाई जाती थी, लेकिन लॉकडाउन और मंदिर बंद के चलते नई पोशाक नहीं आ पा रही है. समयानुसार नई पोशाक नहीं मिल पाने से पुरानी पोशाक धारण करवाई जा रही है. हालांकि ठाकुरजी की पोशाक के लिए फरवरी 2021 तक की बुकिंग हो रखी है.
गोविंददेवजी मंदिर प्रवक्ता मानस गोस्वामी का कहना है की गोविन्द देव जी महाराज को हर रोज दिन दो बार नवीन पोशाक धारण करवाई जाती है. सुबह मंगला आरती के बाद ठाकुरजी को पंचामृत स्नान करवा नवीन पोशाक धारण करवाई जाती है. जो संध्या झांकी तक रहती है. ओलाई सेवा के बाद ठाकुरजी को शयन की पोशाक धारण करवाई जाती है, जो मंगला आरती तक रहती है. ठाकुरजी की पोशाक में 22 मीटर और 28 मीटर कपडा लगता है. गर्मियों में ठाकुरजी को धोती—दुपट्टा की पोशाक धारण करवाई जाती है जिसमें करीब 22 मीटर कपडा लगता है.
वहीं, सर्दियों के दिनों में जामा पोशाक धारण करवाई जाती है जिसमें करीब 28 मीटर कपड़ा लगता है. गोस्वामी ने बताया की एक समय था जब ठाकुरजी को पूर्व राजपरिवार की ही पोशाक धारण करवाई जाती थी, लेकिन 1947 के बाद तत्कालीन महंत प्रद्युमन गोस्वामी ने गोविन्ददेव जी के प्रति शहरवासियों की अगाध आस्था को देखते हुए श्रद्धालुओं से पोशाक धारण करवाने की एक नई परंपरा शुरुआत की. शुरू में केवल धनाढ्य लोग ही शामिल हुए, लेकिन धीरे-धीरे पोशाक अर्पित करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई.
आज धनाढ्य से लेकर सामान्य वर्ग के श्रद्धालु भी पौशाक चढ़ा रहे हैं. मंदिर के प्रवक्ता मानस गोस्वामी ने बताया कि 1947 के बाद पोशाक अर्पित करने के लिए श्रद्धालुओं को उनकी इच्छा के आधार पर पोशाक अर्पित करने की तारीख दी जाती है. भंडार गृह में ठाकुरजी की पहनी हुई दस हजार से अधिक पोशाकें संग्रहित हैं. भंडार गृह भर जाने से करीब एक दशक पहले मंदिर ट्रस्ट ने ठाकुरजी को धारण करवाई हुई पोशाक श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप लौटाना शुरू कर दिया. ठाकुरजी ने अब तक तीस हजार से अधिक पोशाक धारण कर चुके हैं.
बहरहाल, ठाकुरजी के उत्सव पर पोशाक का विशेष महत्व होता है. इसीलिए खास उत्सवों के लिए खास पोशाक तैयार करवाई जाती है. जन्माष्टमी पर गोविन्ददेवजी के लिए मंदिर ट्रस्ट ने विशेष पोशाक बनवाई जाती हैं. दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर ठाकुरजी 100 साल पुरानी सुनहरी पोशाक में दर्शन देते हैं.
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