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नई दिल्ली: कांग्रेस (Congress) ऐसी पहली राजनीतिक पार्टी थी, जिसने 1983 में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) शहर में विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा आयोजित हिंदू सम्मेलन में अयोध्या आंदोलन को ‘प्रोत्साहित’ किया था. और यह महज संयोग नहीं था कि कांग्रेस के दो पूर्व मंत्री दाऊ दयाल खन्ना और गुलजारीलाल नंदा इस सम्मेलन में उपस्थित थे.
कांग्रेस के स्टार प्रचारक ने दिया था ‘राम मंदिर’ बनाने पर जोर
जब विहिप ने 1983 में मुजफ्फरनगर में हिंदू सम्मेलन आयोजित किया था, तो खुद को तुलसीदास के 20वीं सदी का अवतार बताने वाले दाऊ दयाल खन्ना स्टार वक्ता थे. कांग्रेस के एक अन्य नेता गुलजारीलाल नंदा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की उपस्थिति में खन्ना ने अपने विचार एक बार फिर से प्रकट किए, जिसमें उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर (Ram Mandir) के निर्माण पर जोर दिया.
खन्ना ने की थी 3 मस्जिद धवस्त कर मंदिर बनाने की मांग
वह खन्ना ही थे, जिन्होंने तीन उत्तर भारतीय मस्जिदों के बारे में भी मांग रखी, जिसमें उन्होंने दावा किया कि ये (मस्जिदें) मंदिरों के ध्वंसावशेषों पर निर्मित की गई हैं. खन्ना ने जिन मंदिरों का उल्लेख किया है, वे विभिन्न देवी-देवताओं के रहे होंगे, जिसमें कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा, शिव से जुड़ा स्थान काशी और राम की जन्म स्थली अयोध्या. उन्होंने मांग की थी कि मस्जिदों को ध्वस्त करने के बाद फिर से मंदिर बनाए जाएं.
अडवाणी ने भी स्वीकार किया था कांग्रेस का समर्थन
अयोध्या आंदोलन को प्रोत्साहित करने वाली पहली पार्टी कांग्रेस थी. यहां तक कि लाल कृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) ने अयोध्या आंदोलन के लिए कांग्रेस का शुरुआती समर्थन स्वीकार किया था. वहीं, इसके उलट भाजपा दूर रही थी. बताते चलें कि खन्ना उत्तर प्रदेश में मंत्री रहे थे, जबकि कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में शामिल नंदा देश के तीन प्रथम प्रधानमंत्रियों- पंडित जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे थे. नंदा दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने, 1964 में नेहरू के निधन के बाद और 1966 में शास्त्री की मृत्यु के बाद.
‘जुगलबंदी: द बीजेपी बीफोर मोदी’ में किए गए सभी दावे
अशोका विश्वविद्यालय में अध्यापन करने वाले विनय सीतापति ने अपनी नई पुस्तक ‘जुगलबंदी: द बीजेपी बीफोर मोदी’ में ये सभी दावे किए हैं. इस पुस्तक का प्रकाशन पेंग्वीन ने किया है. निजी दस्तावेजों, पार्टी के दस्तावेजों, समाचार पत्रों और 200 से अधिक साक्षात्कारों के आधार पर यह पुस्तक आरएसएस, जनसंघ–जो बाद में भाजपा बन गया–की दशकों लंबी गाथा और इसके संस्थापक नेताओं, अटल बिहारी वाजपेयी एवं लाल कृष्ण आडवाणी की साझेदारी के साथ-साथ भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के वर्चस्व को बयां करती है.
आंदोलन का समर्थन करने वाले पहले वरिष्ठ नेता थे राजीव गांधी
पुस्तक में कांग्रेस के एक नेता का भी बयान शामिल किया गया है और कहा गया है, ‘उन्होंने ये अफवाहें सुनीं थी कि इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) पूजा अर्चना के लिए बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) के ताले 1983 में खोलने की योजना बना रही थीं.’ हालांकि, कांग्रेस के इस नेता ने पुस्तक में अपने नाम का उल्लेख किए जाने से मना कर दिया है. लेकिन फरवरी 1986 में ये संभव हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने मस्जिद के ताले पूजा अर्चना के लिए खोलने का फैसले किया. सीतापति ने अपनी पुस्तक में राजीव गांधी को अयोध्या आंदोलन का समर्थन करने वाले प्रथम वरिष्ठ नेता के रूप में वर्णित किया है.
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